Mamta tiwari

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आज दिन दिन भर रहा बहका हुआ सा !

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आज दिन दिन भर रहा बहका हुआ सा !
चाँद भी दिखता है कुछ दरका हुआ सा!

शाम  सोई  सी  फ़िजाये  जाफ़रानी,
बेख़ुदी की अश्क़ है छलका हुआ सा!

आशियाँ  दिल की ज़मीं ना आसमां है,
फिरमुसाफ़िर क्योंरहा भटका हुआ सा!

हमने समझा पांव कुचला फूल फेंका,
छू के देखा प्यार  था चटका हुआ सा!

रो लिया कुछ अलमिरा दिल देख भारी,
तब लगा  सामान  से हल्का  हुआ सा!

धूपबत्ती  याद   की  तेरी  जली   जब,
गुम धुँआ में होश तन महका हुआ सा!

क्यों लगा ये बे पता दिल के मकाँ में
दर-दरीचे  बंद  पर   खटका हुआ  सा।

________ममता तिवारी (छत्तीसगढ़)

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5 Comments

Anjali korde

21-Jul-2023 04:27 PM

Beautiful

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Alka jain

25-Jun-2023 12:31 PM

Nice

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बहुत ही सुंदर और बेहतरीन अभिव्यक्ति

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